बिहार एक विरासत- “घड़ी” सचिवालय वाली

मनीष वर्मा
मनीष वर्मा

बिहार एक विरासत- इसके अंतर्गत हम नजर डालेंगे अपने शहर पटना के सचिवालय के टावर पर स्थित बड़ी सी चर्चिल पैटर्न की घड़ी पर। क्या ख़ास है इसमें! कुछ तो ख़ास है, तभी तो आज हम और आप बतौर बिहार की विरासत इसकी चर्चा कर रहे हैं। अगर मैं कहूं कि यह घड़ी जिस इमारत पर लगी हुई है वह बिहार ही नहीं बल्कि भारत के चुनिंदा इमारतों में से एक है तो इस बात में कोई अतिशयोक्ति नहीं होनी चाहिए।

सचिवालय भवन का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुआ था

पता नहीं अपने आंखों को दोष दूं या फिर थोड़ी दूषित हो चुकी हवा को। समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है। अगर एरियल डिस्टेंस की बात की जाए तो मेरा बचपन जहां बीता जहां की मिट्टी में खेलते हुए बड़े हुए तो वह स्थान इस कलाॅक टावर से लगभग डेढ़ से दो किलोमीटर की दूरी पर था। और मुझे भली भांति याद है कि मैं उस घड़ी को देख पाता था। देखकर समय बता पाता था। घंटे की आवाज तो खैर सुनाई पड़ती ही थी। हां, एक बात जरूर थी कि उस वक्त बड़ी बड़ी और ऊंची इमारतें हम दोनों के दरम्यान नहीं हुआ करती थीं।

इस घड़ी को पटना शहर में रहने वाले और यहां आने वाले लगभग सभी ने देखा होगा। पर, शायद इसकी विशेषता के बारे में जानकारी लोगों को थोड़ी कम होगी। सचिवालय भवन का निर्माण प्रथम विश्व युद्ध के दौरान हुआ था। इस भवन का डिजाइन जिन्होंने किया था उनका नाम श्रीमान Joseph Fearis Munnings था जो क्राइस्टचर्च, न्यूज़ीलैंड के रहने वाले थे। उन्होंने सचिवालय भवन के इस डिजाइन को प्रिटोरिया, साऊथ अफ्रीका के यूनियन बिल्डिंग से लिया था। अगर हम वास्तुकला की बात करें तो यह मिश्रण है New Gothic और Pseudo Renaissance शैली की।

आईए हम और जानते हैं इस अद्भुत घड़ी के बारे में

इस घड़ी को बनाने वाली कंपनी इंग्लैंड की Gillett & Johnston थी। घड़ी को सचिवालय के टावर में इसे 1924 में लगाया गया था। इस कलाॅक टावर की शुरूआत में ऊंचाई लगभग 198 फ़ीट थी पर 1934 में आए भूकंप के बाद इसकी ऊंचाई घटकर 184 फ़ीट रह गई थी । इस घड़ी को मेनटेन करने के लिए टावर तक पहुंचने के लिए आपको 276 सिढियां चढ़नी पड़ती हैं।

घड़ी की दोनों सूइयों का वजन लगभग पचास किलो और पेंडुलम का वजन लगभग दो क्विंटल है

चूंकि इस घड़ी का शेप गोलाकार था और इसके डिजिटस जो रोमन मे लिखे हुए थे सामान्य से कुछ ज्यादा बड़े थे इसलिए इसे चर्चिल पैटर्न की घड़ी कहा जाता है। इस घड़ी के घंटे की सूई की लम्बाई लगभग साढ़े चार फीट और मिनट के सूई की लम्बाई लगभग साढ़े पांच फ़ीट है, जिसके निर्माण में लोहे और कांसे का इस्तेमाल हुआ है। इस घड़ी के मुख्य भाग का निर्माण में मार्बल और शीशे का इस्तेमाल किया गया है। इसकी विशालता का अनुमान आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इसकी दोनों सूइयों का वजन लगभग पचास किलोग्राम है जबकि इसके पेंडुलम का वजन लगभग दो क्विंटल है। एक बारगी विश्वास करना मुश्किल है। अविश्वसनीय किंतु सत्य, इंकार नही किया जा सकता है।

अभी कुछ दिनों पहले यह घड़ी अचानक से बंद हो गई थी। बड़े मशक्कत के बाद इसे फिर से बनाया गया है। घड़ी इतनी पुरानी हो गई है कि इसके कल पूर्जे का मिलना मुश्किल है। अगर कल को पुनः कोई खराबी आती है तो शायद मजबूरन इसे डिजिटल बना दिया जाए।

लगभग सौ साल पुरानी है यह घड़ी

लगभग सौ साल पुरानी यह घड़ी बहुत सारे इतिहास को अपने आप में समेटे हुई है। बहुत सारे लोगों की यादें इस घड़ी से जुड़ी हुई हैं। सचिवालय की अपनी ही एक ख़ास पहचान है। यहां काम करने वाले अधिकारी और कर्मचारी के लिए इस घड़ी के न होने की कल्पना ही उन्हें भावनात्मक संक्रमण से ग्रसित करने के लिए काफी है।
विरासत है हमारी। हम शहरवासी भावनात्मक रूप से इस घड़ी और हर घंटे बजने वाले घंटे से भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। हम कह सकते हैं और हमें कहना भी चाहिए भावनात्मक विरासत है हमारी। सौ सालों से शान से राजपध पर स्थित कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं का चश्मदीद। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कई अनछुए पहलुओं को अपने आप में समेटे हुए।

लेखक- मनीष वर्मा

(लेखक भारत सरकार के आयकर विभाग में अधिकारी हैं)

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